अपने
सेब के बगीचे को
लहलहाता और फलता-फूलता
बनाए रखना हर किसान का
सपना होता है। लेकिन कई बार सेब
के पेड़ों को तरह-तरह
की बीमारियाँ परेशान कर देती हैं।
इन बीमारियों के लक्षणों को
पहचानना और उनका सही
इलाज करना बगीचे को स्वस्थ और
फल देने वाला बनाए रखने के लिए बहुत
ज़रूरी है। आज के इस
लेख में हम सेब के
पेड़ों में होने वाली आम बीमारियों, उनके
लक्षणों और उनके बचाव
के आसान तरीकों पर चर्चा करेंगे
ताकि आप अपने बगीचे
की रक्षा कर सकें और
भरपूर फल पा सकें।
1. फायर ब्लाइट का प्रकोप: बैक्टीरिया से होने वाला ख़तरा
यह एक गंभीर बैक्टीरिया की बीमारी है, जो सेब के पेड़ों के फूलों, टहनियों और कभी-कभी पूरे पेड़ को ही झुलसाकर नष्ट कर देती है। आमतौर पर गर्म और आर्द्र मौसम में फैलने वाला यह रोग बारिश, हवा या कीड़ों के ज़रिए एक पेड़ से दूसरे पेड़ में फैल सकता है। इससे बचने के लिए:
- संक्रमित टहनियों को कम से कम 8-12 इंच नीचे से काट दें और हर बार काटने के बाद छंटाई के औज़ारों को ज़रूर साफ करें।
- सर्दियों में पेड़ों पर तांबे वाले फफूंदनाशक का छिड़काव करें।
- पेड़ों में ज़्यादा नाइट्रोजन वाली खाद डालने से बचें, क्योंकि इससे बीमारी फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है।
2. पाउडर रूपी फफूंद : सूखे मौसम का दुश्मन
यह एक तरह का फफूंद है, जो सेब के पेड़ों की पत्तियों, टहनियों और फलों पर सफेद, चूर्णी परत के रूप में दिखाई देता है। इससे पेड़ की वृद्धि रुक जाती है और फल भी अच्छे से नहीं बन पाते। इससे बचने के लिए:
- जैसे ही बीमारी के लक्षण दिखें, सल्फर वाले फफूंदनाशक या बागवानी तेल का छिड़काव करें।
- हवा के आने-जाने के लिए पेड़ों की घनी शाखाओं को काट छांट कर दें।
- बीमार पत्तियों और टहनियों को इकट्ठा करके जला दें ताकि बीमारी दूसरे पेड़ों में न फैल पाए।
3. सेब का झुलसा: काले धब्बों से बचाव
यह एक आम फफूंद जनित बीमारी है, जिससे सेब के पेड़ों की पत्तियों, फलों और टहनियों पर काले, पपड़ीदार धब्बे बन जाते हैं। ठंडा और आर्द्र मौसम इस बीमारी को और तेज़ी से फैलाता है। इससे बचने के लिए:
- कलियों के फूटने से पहले और पूरे फलने-फूलने के मौसम में कैप्टन या मैनकोज़ेब जैसे फफूंदनाशकों का नियमित रूप से छिड़काव करें।
- गिरी हुई पत्तियों और फलों को इकट्ठा करके जला दें, ताकि उनमें मौजूद बीमारी के बीजाणु नष्ट हो जाएं।
- ऐसी सेब की किस्मों को लगाएं, जो इस बीमारी के प्रतिरोधक हों।
4. फाइटोफ्थोरा
सड़न: मिट्टी से आने वाले फफूंद का मुकाबला
फाइटोफ्थोरा सड़न, मिट्टी में पाए जाने वाले एक खतरनाक फफूंद के कारण होता है, जिससे सेब के पेड़ों की जड़ें और तना सड़ने लगता है। इससे पत्तियाँ पीली पड़कर गिरने लगती हैं और धीरे-धीरे पूरा पेड़ ही मर जाता है। इससे बचने के लिए आप ये उपाय कर सकते हैं:
- जमीन का सही निकास सुनिश्चित करें: सेब के पेड़ों को ऊंची मेड़ों या टीलों में लगाएं, ताकि पानी जमा न हो और जड़ों तक हवा पहुँचे।
- ज़्यादा पानी देने से बचें: पेड़ों की सिंचाई केवल जड़ों के पास ही करें और ज़रूरत से ज़्यादा पानी देने से बचें, ताकि जड़ें सड़ने का खतरा न हो।
- फफूंदनाशक का प्रयोग करें: मेफेनोक्साम या फॉस्फोरस एसिड युक्त फफूंदनाशक का छिड़काव संक्रमित पेड़ों पर करें।
5. एप्पल
रस्ट, ब्लैक रोट, सूटी ब्लॉच और एप्पल मोज़ेक वायरस: बचाव के उपाय
अपने बगीचे को इन बीमारियों से बचाने के लिए आप ये तरीके अपना सकते हैं:
- संक्रमित पत्तियों और टहनियों को हटा दें: बीमारी से ग्रसित हिस्सों को तुरंत हटाकर जला दें ताकि बीमारी फैलने से रोकी जा सके।
- फफूंदनाशक का छिड़काव करें: समय-समय पर फफूंदनाशकों का छिड़काव करें, लेकिन ध्यान रखें कि ज़्यादा मात्रा में या गलत समय पर इस्तेमाल न करें।
- पर्यावरण का ध्यान रखें: पेड़ों के बीच हवा का संचार बनाए रखें, खाद का सही इस्तेमाल करें और बगीचे की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधी किस्में लगाएं: ऐसी सेब की किस्मों को लगाएं जो इन बीमारियों के प्रतिरोधक हों।
अपने सेब के पेड़ों को स्वस्थ रखना ज़रूरी है, इसके लिए आपको आम बीमारियों के प्रति सतर्क रहना होगा और उनका सही समय पर इलाज करना होगा। बीमारियों के लक्षणों को पहचानकर सही उपाय करने से किसान अपने बगीचों को सुरक्षित रख सकते हैं और अच्छी फसल पा सकते हैं। नियमित तौर पर पेड़ों की जांच करना, सही खेती के तरीकों का पालन करना और समय पर फफूंदनाशक का प्रयोग करना बगीचे की बीमारियों को नियंत्रित करने में बहुत महत्वपूर्ण है। थोड़ी सी सावधानी और देखभाल से किसान सालों तक अपनी मेहनत का फल पा सकते हैं और अपने बगीचों को हरा-भरा और फलता-फूलता बनाए रख सकते हैं।
Astha Gautam
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