छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले से आने वाले मिलन सिंह विश्वकर्मा आज पूरे भारत के किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं। परंपरागत खेती की सीमाओं से आगे बढ़ते हुए उन्होंने लाख (लाह) की खेती को अपनाकर कृषि में नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं। जहां अधिकांश किसान अब भी धान और मौसमी फसलों पर निर्भर हैं, वहीं मिलन सिंह ने 26 एकड़ भूमि पर वैज्ञानिक तरीके से लाख उत्पादन कर कृषि-उद्यमिता का बेहतरीन उदाहरण पेश किया है।
मिलन सिंह ने किस्मत को नहीं, बल्कि मेहनत और वैज्ञानिक सोच को अपनी राह बनाया। प्रारंभ में वे भी सामान्य किसान की तरह धान और दालों की खेती करते थे, लेकिन लागत बढ़ने और मुनाफा कम होने से उन्हें विकल्प की तलाश हुई। वर्ष 2002 में जब भारतीय प्राकृतिक रेजिन एवं गोंद संस्थान (IINRG), रांची के वैज्ञानिकों ने उनके गाँव में वैज्ञानिक पद्धति से लाख उत्पादन की जानकारी दी, तब उन्होंने इस अनजाने क्षेत्र में कदम रखा। आज, यह निर्णय उनकी सफलता की सबसे बड़ी वजह बन चुका है।
वर्तमान में मिलन सिंह पालाश, बेर और सेमियालता जैसे पौधों पर लाख की खेती करते हैं। वे ‘कुसुमी’ और ‘रंगीनी’ नामक दो प्रमुख किस्मों की खेती करते हैं। कुसुमी लाख, जिसकी कटाई दो चक्रों में होती है (जुलाई–जनवरी व जनवरी–जुलाई), उच्च गुणवत्ता के कारण बाज़ार में बेहतर दाम पाती है। वहीं रंगीनी लाख (जुलाई–नवंबर और नवंबर–जुलाई) भी लाभदायक होती है, खासकर बेर के पेड़ों पर इसकी पैदावार अधिक होती है।
उनकी खेती से कुसुमी लाख की प्रति एकड़ उपज 6 से 10 क्विंटल और रंगीनी लाख की उपज 8 से 20 क्विंटल तक होती है। इस लाख का बाज़ार मूल्य लगभग ₹700 प्रति किलोग्राम है। खास बात यह है कि व्यापारी सीधे किसानों के पास आकर लाख खरीदते हैं, जिससे किसानों को परिवहन लागत से राहत मिलती है और लाभांश बढ़ता है।
मिलन सिंह monocropping के बजाय मिश्रित खेती करते हैं – लाख के साथ ही वे सब्ज़ियाँ, दलहन और तिलहन भी उगाते हैं, जिससे आय में स्थिरता बनी रहती है। उन्होंने केवल अपने लिए नहीं, बल्कि आस-पास के किसानों के लिए भी नई सोच और मार्गदर्शन का रास्ता खोला है। उन्हें जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
मिलन सिंह विश्वकर्मा की यह कहानी यह दर्शाती है कि यदि किसान पारंपरिक सोच से आगे बढ़कर वैज्ञानिक तरीके अपनाएं, तो कृषि केवल जीविका नहीं, बल्कि समृद्धि और सम्मान का माध्यम बन सकती है। उनकी मेहनत, दृष्टिकोण और नवाचार ने उन्हें छत्तीसगढ़ के लाख किसान के रूप में एक नई पहचान दी है।
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