महाराष्ट्र का गन्ना उद्योग आज एक गहरे संकट के दौर से गुजर रहा है। एक समय था जब यह राज्य भारत के कुल चीनी उत्पादन का लगभग 35% योगदान देता था, लेकिन अब उत्तर प्रदेश ने उसे पीछे छोड़ दिया है। इसका मुख्य कारण है – कम उत्पादन, कम पेराई अवधि, और बढ़ती आर्थिक चुनौतियाँ। सवाल यह है कि क्या तकनीक, खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इस संकट से महाराष्ट्र को उबार सकती है?
क्यों ज़रूरी है इस विषय पर ध्यान देना?
महाराष्ट्र की चीनी मिलों पर लगभग 10,700 करोड़ रुपये का घाटा है। इसके पीछे उत्पादन में भारी गिरावट, कम पेराई दिन और चीनी की घटती रिकवरी दर जैसी कई वजहें हैं। मिल मालिकों और किसानों की आर्थिक हालत बिगड़ रही है। ऐसे में AI एक ऐसा समाधान बनकर सामने आ रहा है, जो "1 एकड़ में 2 एकड़ का उत्पादन" संभव बना सकता है। अगर महाराष्ट्र ने अब यह कदम नहीं उठाया, तो उत्तर प्रदेश हमेशा के लिए चीनी उत्पादन में शीर्ष पर बना रहेगा।
2024-25: संकट का साल
इस वर्ष गन्ने की पेराई अवधि घटकर सिर्फ 90 दिन रह गई, जबकि पिछले साल यह 130-150 दिन थी। कुल चीनी उत्पादन 81 लाख टन हुआ, जो पिछले साल की तुलना में 29 लाख टन कम है। इससे राज्य को दोहरे आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा—पेराई में कमी से 10,700 करोड़ रुपये और चीनी रिकवरी दर गिरकर 9.5% होने से 2,960 करोड़ रुपये का नुकसान।
AI से कैसे बदलेगी गन्ने की खेती?
महाराष्ट्र सहकारी चीनी मिल संघ अब गन्ना उत्पादन में AI तकनीक का उपयोग बढ़ाने की योजना बना रहा है। AI-सक्षम सेंसर मिट्टी की नमी, पोषक तत्वों और मौसम की जानकारी लेकर किसानों को सटीक सिफारिशें देते हैं। इससे उत्पादन में 40% तक की वृद्धि संभव है। उदाहरण के तौर पर, कर्नाटक में AI के उपयोग से गन्ना उत्पादन 35% तक बढ़ा है (ICAR, 2024)। इसके अलावा, ड्रिप इरिगेशन के साथ AI तकनीक पानी की खपत में 30% तक की बचत कर सकती है। वहीं, उर्वरकों का भी विवेकपूर्ण उपयोग हो सकता है, जिससे लागत घटती है।
मिलों की मांग: 42 रुपये प्रति किलो का MSP
महाराष्ट्र की मिलों ने सरकार से चीनी का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 42 रुपये/किलो करने की मांग की है। उनका तर्क है कि पिछले 5 सालों में गन्ने की एफआरपी (Fair & Remunerative Price) 29% बढ़ी है, लेकिन चीनी की MSP 31 रुपये/किलो पर अटकी हुई है। इससे मिलों को घाटा उठाना पड़ रहा है। वर्तमान में 50% से ज्यादा सहकारी मिलें या तो बंद हो चुकी हैं या घाटे में चल रही हैं, जबकि निजी मिलें हावी होती जा रही हैं।
शरद पवार का सुझाव और सरकार की नीति
पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार का सुझाव है कि सरकार को सहकारी मिलों की हालत पर अध्ययन के लिए आयोग बनाना चाहिए और चीनी के साथ एथेनॉल, बायो-CNG जैसे वैकल्पिक उत्पादों पर भी ध्यान देना चाहिए। वहीं, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार का लक्ष्य 2025 तक 20% पेट्रोल में एथेनॉल मिलाना है। इसके लिए गन्ने की वैल्यू चेन में विविधता लाने की आवश्यकता है।
सरकार की पहल: तकनीक और प्रशिक्षण
राज्य सरकार ने एक बड़ा अभियान शुरू किया है जिसके अंतर्गत 6 लाख हेक्टेयर भूमि पर AI-आधारित गन्ना खेती को लागू किया जाएगा। प्रारंभिक चरण में नासिक और पुणे की 50 मिलों को पायलट प्रोजेक्ट के तहत चुना गया है। किसानों को ड्रोन टेक्नोलॉजी, मोबाइल ऐप्स और रियल-टाइम सलाह के माध्यम से प्रशिक्षित किया जा रहा है ताकि खेती अधिक वैज्ञानिक और लाभकारी बन सके।
निष्कर्ष: क्या महाराष्ट्र फिर से नंबर 1 बन सकता है?
सवाल यही है कि क्या महाराष्ट्र AI की मदद से फिर से भारत का नंबर 1 चीनी उत्पादक राज्य बन सकता है? अगर सरकार, मिल मालिक और किसान मिलकर काम करें, तो यह संभव है। राज्य का लक्ष्य है कि 2027 तक 1.5 करोड़ टन चीनी उत्पादन हो और किसानों की आय प्रति एकड़ 20% तक बढ़े। पारंपरिक खेती के साथ तकनीक का यह मेल ही "मीठी क्रांति" की असली नींव बन सकता है।
स्रोत: गांव जंक्शन
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