अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI), फिलीपींस के वैज्ञानिकों ने एक बेहद अहम शोध में चावल की कुछ खास किस्मों की पहचान की है, जिनमें शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट और कैंसर-रोधी गुण पाए गए हैं। यह खोज हाल ही में फूड हाइड्रो-कोलाइड्स एंड हेल्थ नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुई है। भारत और चीन जैसे एशियाई देशों में बड़ी आंत (कोलोरेक्टल) कैंसर के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है, ऐसे में यह शोध स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है।
शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने विश्वभर से एकत्रित किए गए 1.32 लाख चावल के नमूनों की गहराई से जांच की। इनमें से छह पिगमेंटेड चावल की किस्मों को चुना गया, जिनमें कैंसर विरोधी गुण सबसे अधिक पाए गए। पिगमेंटेड चावल वे होते हैं जिनका रंग सफेद की बजाय लाल, काला या भूरा होता है – जैसे कि ब्राउन राइस और गोल्डन राइस।
इस अध्ययन की अगुवाई कर रहे IRRI के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नेसे श्रीनिवासुलु के अनुसार, शुरुआत में 800 पिगमेंटेड चावल किस्मों का पोषण और एंटीऑक्सीडेंट स्तर पर विश्लेषण किया गया। फिर इन छह किस्मों के अर्क को कोलोरेक्टल और ब्रेस्ट कैंसर कोशिकाओं पर लैब में टेस्ट किया गया। परिणामों से पता चला कि इन अर्कों ने सिर्फ कैंसर कोशिकाओं को ही प्रभावित किया, जबकि स्वस्थ कोशिकाएं सुरक्षित रहीं। यह गुण इन्हें कीमोथेरेपी जैसी दवाओं से अलग बनाता है, जो अक्सर स्वस्थ कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाती हैं।
इसके बाद वैज्ञानिकों ने चावल की भूसी से इन पोषक तत्वों को इथेनॉल जैसी सुरक्षित विधियों द्वारा निकाला और माइक्रोएन्कैप्सुलेशन तकनीक से एक मल्टी-न्यूट्रिएंट सप्लीमेंट तैयार किया, जो पानी में आसानी से घुल जाता है। सिर्फ 7.5 ग्राम/मिलीलीटर मात्रा में भी इस सप्लीमेंट ने कैंसर-रोधी असर दिखाया, जो कई दवाओं के बराबर था। लगभग 300 ग्राम भूसी से 1 किलो माइक्रोएन्कैप्सुलेटेड उत्पाद तैयार किया जा सकता है। यह भी देखा गया कि पकाने पर भी चावल के 70% तक एंटीऑक्सीडेंट तत्व बरकरार रहते हैं।
अगले चरण में इस सप्लीमेंट का परीक्षण चूहों पर किया जाएगा, ताकि इसके प्रभावों की पुष्टि जीवित शरीर में की जा सके। यदि यह परीक्षण सफल होता है, तो आगे इंसानों पर भी इसका परीक्षण संभव हो सकेगा। वर्तमान में वैज्ञानिक यह भी जानने में लगे हैं कि इन चावलों में मौजूद कैंसर-रोधी गुण किस खास जीन के कारण हैं, ताकि भविष्य में इन गुणों को उच्च उपज देने वाली चावल की किस्मों में भी स्थानांतरित किया जा सके।
यह शोध न केवल पोषण विज्ञान के क्षेत्र में बल्कि कृषि और स्वास्थ्य के जुड़ाव के एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में सामने आया है, और यह जानकारी किसानों के साथ-साथ उपभोक्ताओं के लिए भी अत्यंत लाभकारी हो सकती है।
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