देश में गन्ने की खेती में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक एक नई क्रांति की ओर अग्रसर है। इस तकनीक के जरिए जहां फसल की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी, वहीं किसानों की सबसे बड़ी चिंता—पानी की अधिक खपत—भी काफी हद तक कम हो जाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि AI तकनीक के सही इस्तेमाल से गन्ने की खेती अधिक लाभदायक, सटीक और संसाधन-कुशल बन सकती है।
महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी कारखाना संघ लिमिटेड के निदेशक जयप्रकाश दांडेगांवकर के अनुसार, गन्ने की खेती में AI तकनीक के प्रभाव से सिंचाई जल की आवश्यकता में 50% तक की कमी लाई जा सकती है। इसके साथ ही प्रति एकड़ गन्ने के उत्पादन में 30% तक की बढ़ोतरी संभव है। वर्तमान में जहाँ औसत उत्पादन 73 टन प्रति एकड़ है, वहीं AI के प्रयोग से इसे 150 टन प्रति एकड़ तक ले जाया जा सकता है।
इस पहल को साकार रूप देने के लिए वसंतदादा शुगर इंस्टिट्यूट (VSI) और कृषि विकास ट्रस्ट ने एक महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। दोनों संस्थाएं मिलकर AI तकनीक को महाराष्ट्र के अधिक से अधिक गन्ना किसानों तक पहुंचाने का कार्य करेंगी। यह समझौता पुणे में आयोजित एक बैठक में हुआ, जिसमें उपमुख्यमंत्री अजित पवार और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार की उपस्थिति भी रही।
AI तकनीक की इस परियोजना में माइक्रोसॉफ्ट तकनीकी भागीदार के रूप में पहले से ही सक्रिय भूमिका निभा रहा है। कंपनी ने आश्वासन दिया है कि AI आधारित खेती से गन्ने की उपज में निश्चित रूप से वृद्धि होगी और पानी की खपत में उल्लेखनीय गिरावट आएगी। इस परियोजना में महाराष्ट्र की 40 चीनी मिलें भाग लेंगी, जिनमें 23 सहकारी और 17 निजी मिलें शामिल हैं। ये सभी मिलें ऐसी हैं जिन पर VSI का कोई ऋण बकाया नहीं है।
इस योजना के तहत हर दो किलोमीटर क्षेत्र में 25 किसानों के एक समूह को एक स्वचालित AI स्टेशन से जोड़ा जाएगा। ये स्टेशन कृषि विज्ञान केंद्र और VSI के वॉर रूम से रीयल-टाइम में जुड़ेंगे और किसानों को पूर्वानुमान, मृदा परीक्षण, सिंचाई अलर्ट, कीटनाशक सुझाव और मिट्टी पोषण प्रबंधन जैसी सेवाएं तुरंत उपलब्ध कराएंगे। इसका उद्देश्य खेती को डेटा-आधारित और सटीक बनाना है, जिससे किसानों को सही समय पर सही निर्णय लेने में मदद मिल सके।
योजना के आरंभ में, प्रत्येक किसान को लगभग ₹25,000 की लागत वहन करनी पड़ सकती है। यह प्रारंभिक निवेश स्वचालित AI स्टेशन से जुड़ने, आवश्यक उपकरणों और सेवाओं तक पहुंच प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। हालांकि दीर्घकालीन लाभ जैसे जल की बचत, पैदावार में वृद्धि और कम उत्पादन लागत इस खर्च को पूरी तरह से जायज़ ठहराते हैं।
यदि सब कुछ योजना अनुसार चलता है, तो अगस्त के अंत या सितंबर के पहले सप्ताह तक पहला स्वचालित AI स्टेशन स्थापित कर कार्यान्वित कर दिया जाएगा। इससे न केवल किसानों को तत्काल लाभ मिलेगा, बल्कि महाराष्ट्र की चीनी मिलों को भी लंबे समय तक संचालन में मदद मिलेगी और घाटे में कमी आएगी।
निष्कर्षतः गन्ने की खेती में AI का यह हस्तक्षेप भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है। यह पहल न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाएगी, बल्कि जल संरक्षण और टिकाऊ कृषि को भी बढ़ावा देगी। आने वाले वर्षों में अगर यह मॉडल सफल होता है, तो इसे देशभर में अन्य फसलों और क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है।
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