गेहूं की बुवाई करने जा रहे हैं तो इन बातों का जरूर रखे ध्यान..!

गेहूं की बुआई: सही समय और उचित किस्मों का चयन

भारतीय कृषि में गेहूं एक महत्वपूर्ण फसल है, और इसकी सफल बुआई के लिए सही समय, उचित किस्मों का चयन और उचित प्रबंधन बहुत आवश्यक है। इस वर्ष, पिछले वर्ष की तुलना में नवंबर के पहले सप्ताह तक 93% बुआई पूरी हो चुकी है, जो दर्शाता है कि किसान अब गेहूं की बुआई में तेजी ला रहे हैं। इस लेख में हम गेहूं की बुआई से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।




बुआई का महत्व

सही समय पर बुआई करना गेहूं की फसल का मुख्य तत्व है। यदि बुआई में देरी होती है, तो यह फसल के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, खासतौर पर परिपक्वता के समय गर्मी के कारण। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपने क्षेत्र की जलवायु और स्थिति के अनुरूप किस्मों का चयन करें।

किस्मों का चयन

भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में समय और स्थिति के अनुरूप गेहूं की किस्में अलग-अलग होती हैं। उत्तर, पूर्व, और मध्य भारत में समय पर बुआई के लिए निम्नलिखित किस्मों की सिफारिश की जाती है:






  देर से बोई जाने वाली किस्में:

  - पीबीडब्ल्यू 752

  - एचडी 3059

  - एचआई 1634

उर्वरक और सिंचाई

बुआई के समय उपयुक्त उर्वरक की मात्रा और सिंचाई प्रणाली को भी गंभीरता से लेना आवश्यक है। उचित नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (NPK) का उपयोग करना चाहिए। जैसे कि समय पर बोई जाने वाली फसलों के लिए 150:60:40 किलोग्राम एनपीके प्रति हेक्टेयर का उपयोग किया जा सकता है। 




खरपतवार और कीट प्रबंधन

खरपतवार प्रबंधन के लिए, किसान पायरोक्सासल्फोन और अन्य प्रभावी शाकनाशियों का उपयोग कर सकते हैं। दीमक और गुलाबी तना छेदक जैसे कीटों से बचाव के लिए बीजों का उचित उपचार जरूरी है। यह कीटनाशकों के उपयोग से किया जा सकता है, जैसे कि क्लोरोपाइरीफॉस और थायमेथोक्साम।

 निष्कर्ष

गेहूं की फसल की बुआई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें किसान समय, किस्मों और प्रभावी प्रबंधन तकनीकों को ध्यान में रखते हुए अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। सही जानकारी और वृहद योजना के साथ, किसान न केवल फसल की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं बल्कि आर्थिक रूप से भी मजबूत हो सकते हैं। इस प्रकार, बुआई के समय किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपने क्षेत्र की परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए विशेषज्ञ की सलाह लें और उचित कदम उठाएं। 


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